यूं ही ब्लॉग भ्रमण करते कुछ हिन्दी ब्लॉग्स (चिट्ठों) से परिचय हुआ। एक सुखद आश्चर्य की अनुभूति हुई। तो अब स्तरीय हिन्दी भाषी भी ज्यादा से ज्यादा इंटरनेट से जुड़ रहे हैं। एक बानगी आप भी देखिये: कुछ हिन्दी ब्लोग्स aggregator हैं:
१ http://blogvani.com/ २ http://chitthajagat.in/ ज्ञान दत्त पाण्डेय जी बता रहे हैं अपने अनुभव और सुझा रहे हैं बचने के कुछ उपाय अपने चिठ्ठे
ज्ञानदत्त पाण्डेय की मानसिक हलचल पर।
कुछ दिनों से एक परिवार की आंतरिक कलह के प्रत्यक्षदर्शी हो रहे हैं हम। बात लाग - डांट से बढ़ कर सम्प्रेषण अवरोध के रास्ते होती हुई अंततः लाठी से सिर फोड़ने और अवसाद - उत्तेजना में पूर्णतः अतार्किक कदमों पर चलने तक आ गयी है। अब यह तो नहीं होगा कि संस्मरणात्मक विवरण दे कर किसी घर की बात ( भले ही छद्म नाम से ) नेट पर लायें । पर बहुत समय इस सोच पर लगाया है कि यह सब से कैसे बचा जाये। उसे आपके साथ शेयर कर रहा हूं।
बेहतरीन व्यंग्य लेखन उपलब्ध है आलोक पुराणिक के चिट्ठे पर। ताज़ा अंक देखें
यहाँ जिसमें शेयर मार्केट से परेशान गब्बर सिंह अपना दुखडा रो रहा है।
सांभा की एडवाइज पर मैंने जिन शेयरों में इनवेस्ट किया था, उनकी पावर डाऊन पड़ी है। तेरा क्या होगा सांभा-यह धमकी मैंने सांभा को दी भी थी, तो वह हंसकर बोला कि क्या होगा, हद से हद आप ही मार देंगे, आप नहीं मारेंगे ,तो मुझे वह उधार वाले मार देंगे, जिनसे रकम लेकर मैंने तमाम शेयरों में इनवेस्ट किया था। उधर कालिया बता रहा है कि उसके चाचा, मामा, साढ़ू, दामाद जीजा सभी का यही हाल है, सबके शेयरों का पावर आफ हो रखा है। और उधारी वाले सबको परेशान कर रहे हैं। रामगढ़ वाले अब कहने लगे हैं कि गब्बर सिंह तेरे लूटने के लिए कुछ बचा ही ना है। हम तो पहले ही लुट चुके हैं। मैं हैरान था क्योंकि इधर इलाके की पुलिस ने इधर लूटने की मोनोपोली सिर्फ मुझे दी हुई है। ये कौन आ गये मेरे इलाके में लूटने। बाद में पता चला कि लूटने अब मुंबई से आते है, शेयर ऊयर देकर नोट ले जाते हैं। कागज के नोट कहीं और चले जाते हैं, और शेयर का कागज इधर रह जाता है। जिसकी नाव बनाकर बच्चे नाले में डुबा देते हैं। भई, ये क्या नये नये लुटेरे खड़े कर दिये, हमरा तो धंधा ही चौपट हो लिया है।
------------------------------- इश्क में ग़ैरत-ऐ-जज्बात ने रोने ना दिया वरना क्या बात थी, किस बात ने रोने ना दिया । आप कहते हैं कि रोने से ना बदलेंगे नसीब उम्र भर आप की इस बात ने रोने ना दिया ------------------------------- ये दौलत भी ले लो ये शोहरत भी ले लो भले छीन लो मुझसे मेरी जवानी । मगर मुझको लौटा दो वो बचपन का सावन वो काग़ज़ की कश्ती वो बारिश का पानी ।। ------------------------------ कुछ तो दुनिया की इनायात ने दिल तोड़ दिया और कुछ तल्खि़ए हालात ने दिल तोड़ दिया हम तो समझे थे कि बरसात में बरसेगी शराब आई बरसात तो बरसात ने दिल तोड़ दिया ---------------------------- पत्थर के ख़ुदा पत्थर के सनम पत्थर के ही इंसां पाए हैं तुम शहरे मुहब्बत कहते हो, हम जान बचाकर आए हैं ।। होठों पे तबस्सुम हल्का सा आंखों में नमी सी है 'फाकिर' हम अहले- मुहब्बत पर अकसर ऐसे भी ज़माने आए हैं ।। --------------------------- किसी रंजिश को हवा दो कि मैं ज़िंदा हूँ अभी मुझ को एहसास दिला दो कि मैं ज़िंदा हूँ अभी और शायद मैं ज़िन्दगी की सहर ले के आ गया क़ातिल को आज अपने ही घर लेके आ गया ता-उम्र ढूँढता रहा मंज़िल मैं इश्क़ की अंजाम ये कि गर्द-ए-सफ़र लेके आ गया साथ ही चराग़-ओ-आफ़ताब ग़ुम, बड़ी हसीन रात थी शबाब की नक़ाब ग़ुम, बड़ी हसीन रात थी लिखा था जिस किताब में, कि इश्क़ तो हराम है हुई वही किताब ग़ुम, बड़ी हसीन रात थी
जैसी ख़ूबसूरत गजलें लिखने वाले सुदर्शन फ़ाकिर नहीं रहे। श्रद्धांजलि दे रहे हैं
यूनुस खान और
मनीष कुमार अपने - अपने चिट्ठों पर। अन्य उल्लेखनीय चिट्ठे हैं:
चोखेर बाली इससे पहले कि वे आ के कहें हमसे हमारी ही बात हमारे ही शब्दों में और बन जाएँ मसीहा हमारे , हम आवाज़ अपनी बुलन्द कर लें ,खुद कह दें खुद की बात ये जुर्रत कर लें ....
घुघूती बासूती माँ बहुत ही क्रान्तिकारी सी रही थीं जीवन भर । बहुत सी बातें हैं जिनके लिए मैं उनका बहुत आदर करती हूँ । जैसे १२ वर्ष की आयु में जब वे विवाह कर गाँव गईं तो उन्होंने घूँघट निकालने से साफ मना कर दिया । आज चोखेरबाली (href="http://sandoftheeye.blogspot.com/2008/02/blog-post_18.html) में जब बन्धनों की बात हुई तो भी मुझे अपनी माँ पर गर्व हुआ ।
जो न कह सके - Sunil Deepak
कुछ दिन पहले पुरी में जगन्नाथ मंदिर जाने का मौका मिला था, पर वहाँ का भीतरी कमरा जहाँ भगवान जगन्नाथ की प्रतिमा है वह उस समय बंद था, क्योंकि "यह प्रभु के विश्राम का समय था"। पुजारी जी बोले कि अगर मैं समुचित दान राशि दे सकूँ तो विषेश दर्शन हो सकता है. यानि पैसा दीजिये तो प्रभु का विश्राम भंग किया जा सकता है. भुवनेश्वर के प्राचीन और भव्य लिंगराज मंदिर में, पहले दो पुजारियों में आपस में झड़प देखी कि कौन मुझे जजमान बनाये. भीतर पुजारियों ने सौ रुपये के दान की छोटेपन पर ग्यारह सौ रुपये की माँग को ले कर जो भोंपू बजाया तो सब प्रार्थना और श्रद्धा भूल गया.
निर्मल-आनन्द में अभय तिवारी महान भारतीय क्रिकेट तमाशों (IPL, ICL) की सफलता को लेकर सशंकित लगते हैं , पर अपने ही अंदाज में।
कहा जा रहा है कि क्रिकेट और बौलीवुडीय ग्लैमर का यह संगम सास-बहू को प्राइम टाइम पर कड़ी चुनौती देने को तैयार है। अगर यह सास-बहू को देश के मनोरंजन के आलू-प्याज़ के रूप में नहीं हटा पाया तो कुछ नहीं हटा पाएगा। हम समझ नहीं पा रहे हैं कि इतने बड़े-बड़े धनपशुओं को हुआ क्या है? हमें तो इस में हिट होने लायक कोई मसाला नहीं दिख रहा- हो सकता है कुछ रोज़ लोग उसके नएपन को परखने के लिए बीबी के हाथ से रिमोट छीनकर क्रिकेट को वरीयता दे दें। मगर एक बार हेडेन और धोनी को एक ही टीम का हिस्सा होते हुए देख लेने के बाद कोई क्यों रोज़-रोज़ बीबी से झगड़ा मोल लेगा॥ मेरी समझ में नहीं आता?
शिवकुमार मिश्र और ज्ञानदत्त पाण्डेय का ब्लॉग पर भी कुछ अच्छा हो रहा है:
शिवकुमार मिश्र और ज्ञानदत्त पाण्डेय, ब्लॉग-गीरी पर उतर आए हैं. विभिन्न विषयों पर बेलाग और प्रसन्नमन लिखेंगे. दोनों ने निश्चय किया है कि हल्का लिखकर हलके हो लेंगे. लेकिन कभी-कभी गम्भीर भी लिख दें तो बुरा न मनियेगा.