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[Edit 02 March 2008] What Mr Javed Akhtar has to say about this song (from an english website)
".....खो न जाएँ ये..तारे ज़मीं पर.. एक बेहद भावनात्मक और प्रभावशाली गीत है। इस गीत की ईमानदारी और सहजता को जिस तरीके से शंकर महादेवन ने अपनी गायिकी में उतारा है वो आपको इसके हर शब्द पर विश्वास करने पर मजबूर करता है। प्रसून ने अपनी सृजनात्मक प्रतिभा का परिचय देते हुए बेमिसाल रूपकों का प्रयोग किया है। गीत के बोल आपको हर रूपक की अलग-अलग विवेचना करने को नहीं कहते पर वे आपके इर्द-गिर्द एक ऍसा माहौल तैयार करते हैं जिससे आप प्यार, कोमलता और दया की इंद्रधनुषी भावनाओं में बहे चले जाते हैं। ये गीत एक धमाके की तरह खत्म नहीं होता ..बस पार्श्व में धीरे धीरे डूबता हुआ विलीन हो जाता है..कुछ इस तरह कि आप इसे सुन तो नहीं रहे होते पर इसकी गूंज दिलो दिमाग में कंपन करती रहती है।...."
------------------------देखो इन्हें ये हैं ओस की बूँदें पत्तों की गोद में आस्मां से कूदें अंगडाई लें फिर करवट बदलकर नाज़ुक से मोती हंस दें फिसलकर खो ना जाएँ ये तारे ज़मीं पर ये तो हैं सर्दी में धूप की किरणें उतरें जो आँगन को सुनहरा सा करने मन के अंधेरों को रोशन सा कर दें ठिठुरती हथेली की रंगत बदल दें खो ना जाएँ ये तारे ज़मीं पर | |
जैसे आंखों की डिबिया में निंदिया और निंदिया में मीठा सा सपना और सपने में मिल जाये फरिश्ता सा कोई जैसे रंगों भरी पिचकारी जैसे तितलियाँ फूलों की क्यारी जैसे बिना मतलब का प्यारा रिश्ता हो कोई ये तो आशा की लहर है ये तो उम्मीद की सहर है खुशियों की नहर है खो ना जाएँ ये तारे ज़मीं पर | |
देखो रातों के सीने पे ये तो झिलमिल किसी लौ से उगे हैं ये तो अम्बुआ की खुशबू है बागों से बह चले जैसे कांच में चूड़ी के टुकड़े जैसे खिले - खिले फूलों के मुखड़े जैसे बंसी कोई बजाये पेड़ों के तले ये तो झोंके हैं पवन के हैं ये घुंघरू जीवन के ये तो सुर हैं चमन के खो ना जाएँ ये तारे ज़मीं पर | |
मोहल्ले की रौनक गलियां हैं जैसे खिलने की जिद पर कलियाँ हैं जैसे मुठ्ठी में मौसम की जैसे हवाएं ये हैं बुजुर्गों के दिल की दुआएं खो ना जाएँ ये तारे ज़मीं पर कभी बातें जैसे दादी नानी कभी छलकें जैसे मम मम पानी कभी बन जाएँ भोले सवालों की झड़ी सन्नाटे में हंसी के जैसे सूने होठों पे खुशी के जैसे ये तो नूर है बरसे गर तेरी किस्मत हो बड़ी जैसे झील में लहराये चन्दा जैसे भीड़ में अपने का कन्धा जैसे मनमौजी नदिया झाग उडाये कुछ कहे जैसे बैठे बैठे मीठी सी झपकी जैसे प्यार की dheemi सी थपकी जैसे कानों में सरगम हरदम बजती ही रहे जैसे बरखा उडाती है बुंदिया...... खो ना जाएँ ये तारे ज़मीं पर |